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Monday, October 22, 2012

सौ एकड़ कृषि भूमि और लील गई जगबूढ़ा

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खटीमा: नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे क्षेत्रों के लिए तबाही का पर्याय बनी जगबूढ़ा नदी का कहर जारी है। भारी बारिश के बाद रौद्र रूप में आई जगबूढ़ा ने भू-कटाव तेज कर दिया है। करीब सौ एकड़ भूमि नदी लील गई है। नदी से सीमांत मेलाघाट कस्बा कुछ ही दूरी पर रह गया है।
जगबूढ़ा नदी सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रतिवर्ष कहर बरपाती रही है। हरसाल बारिश के दिनों में नदी के उफान पर आने से कृषि भूमि को खासा नुकसान पहुंचता है। इसके बाद बाढ़ व आपदा से बचाव के नाम पर तमाम जतन किए जाते हैं। जिन पर अब तक करोड़ों खर्च किया जा चुका है। लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। दो दिनों की बारिश ने बाढ़ से बचाव के सभी दावों की पोल खोल कर रख दी। नदी ने करीब सौ एकड़ कृषि भूमि को फिर आगोश में ले लिया है। यह सिलसिला कई सालों से चल रहा है। बाढ़ पर नियंत्रण के नाम पर बनाई गई वायरक्रेट भी एक झटके में तबाह हो गई। सीमावर्ती मेलाघाट कस्बे से नदी महज कुछ सौ मीटर दूरी पर रह गई है। नदी इसी तेजी से कटाव करती रही तो भविष्य में कस्बे के अस्तित्व पर संकट मंडरा सकता है। दो दिन तक मूसलाधार बारिश के बाद सीमावर्ती कस्बे के शम्बू, रामवृक्ष, दीपक, राजेंद्र, घनपत, इन्द्रासन, राजेश्वर, वामदेव, राजेश्वर तिवारी आदि काश्तकारों की कृषि भूमि खड़ी फसल के साथ नदी में समा गई।
ग्राम प्रधान रामसजीवन का कहना था कि शासन-प्रशासन भू कटाव रोकने के लिए पुख्ता प्रबंध करे। अन्यथा कस्बे का नामोनिशान मिट जायेगा। इस बीच प्रशासन ने बाढ़ में डूब कर मरी बकरी के स्वामी जैबुननिशा को आर्थिक सहायता प्रदान की।
jagran.com से साभार 

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