http://garhwalbati.blogspot.com/
कभी खुली और साफ सुथरी रोड के लिए पहचाने जाने वाला देहरादून आज ट्रैफिक जाम की समस्या से जूझ रहा है। राजधानी बनने के बाद से यहाँ ट्रैफिक की समस्या भी बढ़ गयी है। दोपहर हो, शाम या रात, दून की सड़कों के लिए सबकुछ एक जैसा ही है। यहां मौसम तो हर घंटे बदलता है, लेकिन जो नहीं बदलता वो है ट्रैफिक जाम। हर वक्त वाहनों की दौड़ भाग से सड़कों का नजारा किसी से छुपा नहीं है। करीब पांच वर्ग किमी दायरे में सिमटे शहर की कोई भी मुख्य सड़क ऐसी नहीं है जहां आधा किमी रास्ता तय करने में वाहनों को आधा घंटा न लगता हो। पीक-ऑवर में हालात और भी बदतर हो जाते हैं। आज ट्रैफिक 'जाम' दून की 'शान' बन चुका है।
पहाड़ों की रानी मसूरी की 'छांव' में कभी सुकून की नगरी समझा जाने वाला देहरादून अब 'रेंगता' शहर बन चुका है। हालात इतने खराब है की सड़कों पर पैदल चलने की जगह भी नसीब नहीं है। बात दून की मुख्य सड़कों की करें, तो तस्वीर और डरावनी है। चाहे वह शहर का 'दिल' घंटाघर हो या पलटन बाजार। यदि आप दिल्ली या सहारनपुर की तरफ से देहरादून आ रहे हैं तो समझ जाइए कि प्रवेश करते ही पटेलनगर में आपका सामना जाम से हो जाएगा। पटेलनगर से घंटाघर तक जाने की दूरी वैसे तो महज तीन किमी है, लेकिन ये सफर तय करने में कम से कम एक घंटा लगना तय है। आप पंजाब और हिमाचल से आ रहे हैं तो प्रेमनगर में आप जाम में फंस जाएंगे। हालात यह है कि वहां से घंटाघर तक की सात किलोमीटर की दूरी सवा से डेढ़ घंटे में तय होती है। यही हाल हरिद्वार से आने पर भी है। शहर की मुख्य सड़कों में शुमार चकराता रोड, घंटाघर, जीएमएस रोड, सहारनपुर रोड, प्रिंस चौक, हरिद्वार रोड, आढ़त बाजार, राजपुर रोड, कांवली रोड, दून चौक व दर्शनलाल चौक कुछ ऐसी सड़के हैं, जहां ट्रैफिक चलता नहीं रेंगता नजर आता है। सुबह सात बजे से रात दस बजे तक यहां सिर्फ जाम ही देखने को मिलता है। स्कूल जाने का समय, छुट्टी का समय, दफ्तर खुलने व बंद होने का वक्त तो इन सड़कों के लिए मुसीबत से कम नहीं है। रही-सही कसर विक्रम पूरी कर देते हैं।
ट्रैफिक सुधार के लिए पिछले सालों में पुलिस ने कई महत्वाकांक्षी योजनाओं पर काम किया। इनमें ई-चालान, ट्रैफिक मित्र व स्कूली बच्चों को ट्रैफिक नियम समझाने जैसी योजनाएं शामिल थीं। बीच में कुछ योजनाएं ऐसी भी थीं, जो सुबह शुरू तो हुई, लेकिन शाम तक भी नहीं चल सकीं। इनमें रस्सी ट्रैफिक रोको, बैरिकेडिंग, कुछ सड़कों को वन-वे करने जैसी योजनाएं शामिल थीं। ई-चालान का सेटअप चल भी रहा है या नहीं अफसरों को शायद यह पता नहीं है। ट्रैफिक मित्र का हश्र तो सभी जानते हैं। रहा स्कूली बच्चों का अभियान तो पिछले कुछ माह से वो भी 'ठंडे बस्ते' में चले गए हैं।
कुछ समाधान
-शहर में फ्लाईओवर व अंडर-ओवर पास बनाएं जाएं।
-पार्किंग की उचित व्यवस्था की जाए।
-जहां संभव हो सड़कों का चौड़ीकरण किया जाये।
-चकराता रोड व आढ़त के बॉटल नेक खोले जाएं।
-बस व विक्रम के स्टॉपेज निर्धारित किए जाएं।
No comments:
Post a Comment
thank for connect to garhwali bati