उत्तराखंड, भारत राष्ट्र का सत्ताईसवां राज्य है। कुल 53,483 वर्ग कि.मी. में फैले इस राज्य का 35,651 वर्ग कि.मी. का हिस्सा वन्य क्षेत्र में आता है। 9 नवम्बर सन् 2000 में जब इस राज्य की स्थापना की गई तो, यहाँ के स्थानीय लोगों की आँखों में ख़ुशी की एक अलग ही चमक थी। कई वर्षो के संघर्ष और हजारों-लाखों लोगों के बलिदान के बाद जाकर उत्तराखंड को एक अलग राज्य का दर्जा हासिल हुआ। उत्तराखंड राज्य बनने पर यहाँ के लोगों को पूर्ण विश्वाश था कि अब तो राज्य का विकास जरूर होगा, ऊँचे और दुर्गम पहाडी क्षेत्रों में जाने के लिए सरकार अब जल्द ही कोई न कोई ठोस कदम तो जरूर उठाएगी। विकास की बात करें तो राज्य में विकास तो जरूर हुआ है लेकिन सिर्फ शहरी क्षे़त्रों में और खास कर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में, और हो भी क्यों ना क्योंकि उत्तराखंड सरकार के सारे बडे़ नेता यहीं तों रहते हैं। उत्तराखंड के शहरी इलाकों में तो सुख सुविधा और विकास के नाम पर काफी कार्य किये गए है, लेकिन जरा सोचिये उत्तराखंड में जो लोग दुर्गम पहाडी़ इलाकों में रहते हैं उनका क्या। राज्य के मंत्री तेज तेज सुरों में यह तो बोल देते है की उन्होंने राज्य के विकास के लिए कई कार्य किए हैं, लेकिन जब पहाडों के ग्रामीण क्षेत्रों में पानी, बिजली की समस्या होती है तो उन लोगों की सुद लेने के लिए वहाँ कोई नहीं जाता है। राज्य की स्थापना के इतने वर्षो बाद भी उत्तराखंड में आज भी कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहाँ बिजली पानी की अच्छी सुविधा नहीं है। आज भी कई गांवों में पानी न आने पर लोगों को कई कि.मी. दूर से पानी लाना पड़ता है। बिजली के अभाव में रात अन्धेरे में गुजारनी पड़ती है। इन सब के अलावा सड़क, शिक्षा और जंगली जानवरों से ग्रामीणों की सुरक्षा पर भी राज्य सरकार की लापरवाही से यहाँ के स्थानिय लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
राज्य में वर्ष 2010 में बरसात के कारण कई जगहों पर सड़क टूटने से लोगो को काफी परेशनियों का सामना करना पडा़। इसके अलावा राज्य के ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में शिक्षकों की कमी के चलते छात्रों को दिक्कतों का सामना करना पडा रहा है़। पिछले दिनों रामनगर से सटे ग्रामीण क्षेत्र सुन्दरखाल में बाघ द्वारा कई लोगों के मारे जाने की खबर ने भी यहाँ की सरकार की पोल खोल कर रख दी। उस वक्त तो राज्य सरकार ने सुन्दरखाल के लोगों की पूर्नवास की बात कही थी लेकिन अभी फिलहाल सब कुछ ठंडे बस्ते में है। यह समस्या उत्तराखंड के किसी एक ग्रामीण इलाके की नहीं बल्कि राज्य में ऐसे कई ग्रामीण इलाके हैं जहाँ इस तरह की समस्याओं से लोगों को हर रोज दो-चार होना पडता़ है। पर्यटन का क्षेत्र कहें जाने वाले इस राज्य में पर्यटन के कई क्षेत्र जैसे हरिद्वार, मंसूरी, ऋषिकेश, नैनीताल और कई अन्य पर्यटन स्थल ऐसे हैं जहाँ सुरक्षा को लेकर बहुत लापरवाही बरती जाती है। ऐसे में अगर इन पर्यटन स्थलों पर कभी कोई आतंकी गतिविधि होती है तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा। उत्तराखंड राज्य में आज भी कई स्थान ऐसे हैं जहाँ विकास की बहुत आवशयकता है लेकिन राज्य सरकार की इस कछुआ चाल से विकास कब होगा, यह कहना मुश्किल है।
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