उत्तराखंड सरकार के कामकाज की समीक्षा पर नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी कैग की 2008-09 की रिपोर्ट देखें तो भ्रष्टाचार और मिलीभगत के ऐसे हैरतअंगेज मामले सामने आते हैं कि सरकार की नीयत पर ही सवालिया निशान लग जाते हैं. ये रिपोर्ट 22सितंबर 2010 को विधानसभा पटल पर रखी गई थी.
कहने को देवभूमि और पर्यटन प्रदेश में किसके लिये सरकारी योजनाएं शुरू की जी रही हैं. जनता को लाभ पंहुचाने के लिये या कंपनियों और ठेकेदारों के लिये. रिपोर्ट के अनुसार निष्फल व्यय और अधिक भुगतान करके सरकारी कोष को करोडों का चूना लगाया गया है.-
लोकनिर्माण विभाग हल्द्वानी द्वारा बाईपास मार्ग पर पुल की नींव की सुरक्षा न किये जाने के कारण पुल ढह गया जिससे 4.46 करोड का नुकसान हुआ.साथ ही सुगम परिवहन का उद्देश्य भी पूरा नहीं हुआ .
लोकनिर्माण विभाग थत्यूड ने बिटुमिनस मैकडम और बिटुमिनस कंक्रीट का जरूरत से अधिक उपयोग किया और ठेकेदारों को अधिक दरों पर भुगतान करके अनुचित लाभ पंहुचाया जिससे 2.68 करोड का नुकसान हुआ.
काशीपुर में लोकनिर्माण विभाग ने बिना उचित डिजाइन के 1.61 करोड की लागत से सडकें बनवाईं जो 6 महीने में ही टूट गईं और 1.61 करोड का चूना लगा.
ऊधमसिंहनगर में भी ओवर ले डिजाइन न अपनाए जाने के कारण मरम्मत की गई सडकें 2 महीने में ही टूट गईं जिसमें 1.36 करोड लगे थे.
देहरादून में सहिया खण्ड में सडक बनाने का 5.15 करोड का ठेका कई ठेकेदारों में बांटा गया जिससे घटिया काम हुआ और बहुत जल्दी ही वो टूट गईं.इस प्रकार से निरर्थक व्यय हुआ.
इसी तरह से हरिद्वार में भारतीय रोड कॉंग्रेस के सुझावों का उल्लंघन करके 4.28 करोड की लागत से बनाया गया मार्ग जल्दी ही क्षतिग्रस्त हो गया. मामले एक नहीं अनेक हैं और शायद ही कोई जिला या खंड इन घोटालों से छूटा हो.अगर इनका योग किया जाए तो ये शायद अरब पंहुच जाए.
विडंबना ये कि महालेखा परीक्षक की ये रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर भी रखी गई लेकिन इसपर बहस या सवाल न उठे. और ये खामोशी भी स्तब्ध करने वाली है.बीजेपी की फांस बनी 56 घोटालों की जांच
कहने को देवभूमि और पर्यटन प्रदेश में किसके लिये सरकारी योजनाएं शुरू की जी रही हैं. जनता को लाभ पंहुचाने के लिये या कंपनियों और ठेकेदारों के लिये. रिपोर्ट के अनुसार निष्फल व्यय और अधिक भुगतान करके सरकारी कोष को करोडों का चूना लगाया गया है.-
लोकनिर्माण विभाग हल्द्वानी द्वारा बाईपास मार्ग पर पुल की नींव की सुरक्षा न किये जाने के कारण पुल ढह गया जिससे 4.46 करोड का नुकसान हुआ.साथ ही सुगम परिवहन का उद्देश्य भी पूरा नहीं हुआ .
लोकनिर्माण विभाग थत्यूड ने बिटुमिनस मैकडम और बिटुमिनस कंक्रीट का जरूरत से अधिक उपयोग किया और ठेकेदारों को अधिक दरों पर भुगतान करके अनुचित लाभ पंहुचाया जिससे 2.68 करोड का नुकसान हुआ.
काशीपुर में लोकनिर्माण विभाग ने बिना उचित डिजाइन के 1.61 करोड की लागत से सडकें बनवाईं जो 6 महीने में ही टूट गईं और 1.61 करोड का चूना लगा.
ऊधमसिंहनगर में भी ओवर ले डिजाइन न अपनाए जाने के कारण मरम्मत की गई सडकें 2 महीने में ही टूट गईं जिसमें 1.36 करोड लगे थे.
देहरादून में सहिया खण्ड में सडक बनाने का 5.15 करोड का ठेका कई ठेकेदारों में बांटा गया जिससे घटिया काम हुआ और बहुत जल्दी ही वो टूट गईं.इस प्रकार से निरर्थक व्यय हुआ.
इसी तरह से हरिद्वार में भारतीय रोड कॉंग्रेस के सुझावों का उल्लंघन करके 4.28 करोड की लागत से बनाया गया मार्ग जल्दी ही क्षतिग्रस्त हो गया. मामले एक नहीं अनेक हैं और शायद ही कोई जिला या खंड इन घोटालों से छूटा हो.अगर इनका योग किया जाए तो ये शायद अरब पंहुच जाए.
विडंबना ये कि महालेखा परीक्षक की ये रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर भी रखी गई लेकिन इसपर बहस या सवाल न उठे. और ये खामोशी भी स्तब्ध करने वाली है.बीजेपी की फांस बनी 56 घोटालों की जांच
एक समय में राजनीतिक गलियारो में सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाले 56 घोटाले आज भी जांच के दौर से ही गुजर रहे है. विधानसभा चुनाव 2007 में अपने घोषणा पत्र के ज़रिये हल्ला मचाकर छः महीने में लोगो के सामने इन सभी घोटालो का कोरा चिट्ठा खोलने का दावा करने वाली भाजपा, सरकार में आने के तीन साल बाद भी एक भी घोटाले को सार्वजनिक करने में नाकाम रही है.
गौरतलब है कि भाजपा ने इसी मुद्दे को प्रमुखता के साथ उठाते हुए 2007 में सत्ता पर काबिज़ होने में सफलता हासिल की थी, जिसके बाद अपने घोषणा पत्र के अनुसार इन घोटालो को छः महिने में उजागर करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवनचन्द्र खण्डुडी ने 05 सितम्बर 2007 में जांच आयोग अधिनियम 1952 के तहत रिटायर्ड न्यायमूर्ति एएन वर्मा की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन एक साल के लिए किया था। जिसके बाद लगभग एक साल होने पर जांच आयोग के अध्यक्ष एएन वर्मा ने इस पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन जांच पूरी ना होने के चलते इस आयोग का कार्यकाल एक साल और बढ़ा दिया गया।
इसके बाद 03 सितम्बर 2008 को रिटायर्ड जस्टिस आरए शर्मा को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, एक साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद एक बार फिर कार्यकाल बढाया गया लेकिन 23 जनवरी 2010 को शर्मा का निधन होने के कारण ये पद एक बार फिर खाली हो गया। इसके बाद 21 मई 2010 को जांच आयोग के अध्यक्ष पद पर रिटायर्ड जस्टिस शम्भूनाथ श्रीवास्तव को नियुक्त किया गया। इसके बाद 3 सितम्बर 2010 को आयोग का कार्यकाल पुरा होने के बाद इस आयोग का कार्यकाल एक साल के लिए बढाया गया है, जिसमें अक्टुबर 2010 को रिटायर्ड जस्टिस बीसी काण्डपाल को इस आयोग का जिम्मा दिया गया।
इस पर अब तीन साल पूरे होने और बार बार कार्यकाल बढाने के बाद कांग्रेस ने इस मुद्दे पर उल्टा भाजपा को ही घेरना शुरू कर दिया है। आयोग बनने के बाद अब इसका कार्यकाल चार बार बढाया जा चुका है, जिसमें न्यायमूति शर्मा द्वारा अप्रैल में दो घोटालो की रिपोर्ट राज्य सरकार को सौपी जा चुकी है, जबकि इसके बाद भी दो और घोटालो की रिपोर्ट सरकार तक पहुची है, जिसमें सूत्रो की माने तो उद्यान, पर्यटन, आबकारी और कोल्ड स्टोरेज से सम्बन्धित चार घोटालो की रिपोर्ट सरकार तक पहुची है, जबकि भाजपा द्वारा कथित बाकि 52 घोटालो की रिपोर्ट आना अब भी बाकी है। जबकि अभी महज तीन सालो में चार रिपोर्ट के दौरान ही लगभग 33 लाख रूपये इस आयोग में बहाये जा चुके है।
इस लिहाज से देखा जाये तो 56 घोटालो की जांच में पूरे 42 साल लग जाएंगें. और इसमें लगभग 5 करोड़ रूपये की मोटी रकम इन 42 सालो में आयोग में लगेगी। लगता है राज्य सरकारें महज अपना उल्लू सीधा करने में ही जुटी है, भाजपा कांग्रेस को और कांग्रेस भाजपा को भ्रष्टाचार में लिप्त बताकर वोट बैक की राजनीति करने में जुटी है। विशेष आयोग जांच में जुटा है, और भाजपा भी इस आयोग को बनाकर अब अपनी कही गयी बातो को भूल गयी है,
बीजेपी के आरोपों के मुताबिक कांग्रेस के कार्यकाल में पटवारी घोटाला, दरोगा भर्ती घोटाला, कृषि फ़ार्मों की नीलामी का घोटाला, निजी कंपनियों को कौड़ियों के भाव ज़मीन आवंटन का घोटाला, पर्यटक मल्टीप्लेक्स निर्माण घोटाला, शराब बिक्री घोटाला, कम्प्यूटर खरीद घोटाला और मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष में घोटाले जैसे बड़े मामले हुए. चार घोटालों की जांच बीजेपी सरकार करा चुकी है, बाकी 52 आरोप जस के तस हैं.
कथित घोटालों के इस मामले में एक बात तो साफ़ है कि राजनैतिक दल घोषणा पत्र में कई लुभावने और क्रांतिकारी किस्म के वादे तो कर देते हैं लेकिन उन वादों को पूरा कर पाना सत्ता हासिल होते ही लगता है शायद मुश्किल हो जाता है. फिर चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस
उत्तराखंड में महिलाएं और बच्चे कुपोषण का शिकारगौरतलब है कि भाजपा ने इसी मुद्दे को प्रमुखता के साथ उठाते हुए 2007 में सत्ता पर काबिज़ होने में सफलता हासिल की थी, जिसके बाद अपने घोषणा पत्र के अनुसार इन घोटालो को छः महिने में उजागर करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवनचन्द्र खण्डुडी ने 05 सितम्बर 2007 में जांच आयोग अधिनियम 1952 के तहत रिटायर्ड न्यायमूर्ति एएन वर्मा की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन एक साल के लिए किया था। जिसके बाद लगभग एक साल होने पर जांच आयोग के अध्यक्ष एएन वर्मा ने इस पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन जांच पूरी ना होने के चलते इस आयोग का कार्यकाल एक साल और बढ़ा दिया गया।
इसके बाद 03 सितम्बर 2008 को रिटायर्ड जस्टिस आरए शर्मा को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, एक साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद एक बार फिर कार्यकाल बढाया गया लेकिन 23 जनवरी 2010 को शर्मा का निधन होने के कारण ये पद एक बार फिर खाली हो गया। इसके बाद 21 मई 2010 को जांच आयोग के अध्यक्ष पद पर रिटायर्ड जस्टिस शम्भूनाथ श्रीवास्तव को नियुक्त किया गया। इसके बाद 3 सितम्बर 2010 को आयोग का कार्यकाल पुरा होने के बाद इस आयोग का कार्यकाल एक साल के लिए बढाया गया है, जिसमें अक्टुबर 2010 को रिटायर्ड जस्टिस बीसी काण्डपाल को इस आयोग का जिम्मा दिया गया।
इस पर अब तीन साल पूरे होने और बार बार कार्यकाल बढाने के बाद कांग्रेस ने इस मुद्दे पर उल्टा भाजपा को ही घेरना शुरू कर दिया है। आयोग बनने के बाद अब इसका कार्यकाल चार बार बढाया जा चुका है, जिसमें न्यायमूति शर्मा द्वारा अप्रैल में दो घोटालो की रिपोर्ट राज्य सरकार को सौपी जा चुकी है, जबकि इसके बाद भी दो और घोटालो की रिपोर्ट सरकार तक पहुची है, जिसमें सूत्रो की माने तो उद्यान, पर्यटन, आबकारी और कोल्ड स्टोरेज से सम्बन्धित चार घोटालो की रिपोर्ट सरकार तक पहुची है, जबकि भाजपा द्वारा कथित बाकि 52 घोटालो की रिपोर्ट आना अब भी बाकी है। जबकि अभी महज तीन सालो में चार रिपोर्ट के दौरान ही लगभग 33 लाख रूपये इस आयोग में बहाये जा चुके है।
इस लिहाज से देखा जाये तो 56 घोटालो की जांच में पूरे 42 साल लग जाएंगें. और इसमें लगभग 5 करोड़ रूपये की मोटी रकम इन 42 सालो में आयोग में लगेगी। लगता है राज्य सरकारें महज अपना उल्लू सीधा करने में ही जुटी है, भाजपा कांग्रेस को और कांग्रेस भाजपा को भ्रष्टाचार में लिप्त बताकर वोट बैक की राजनीति करने में जुटी है। विशेष आयोग जांच में जुटा है, और भाजपा भी इस आयोग को बनाकर अब अपनी कही गयी बातो को भूल गयी है,
बीजेपी के आरोपों के मुताबिक कांग्रेस के कार्यकाल में पटवारी घोटाला, दरोगा भर्ती घोटाला, कृषि फ़ार्मों की नीलामी का घोटाला, निजी कंपनियों को कौड़ियों के भाव ज़मीन आवंटन का घोटाला, पर्यटक मल्टीप्लेक्स निर्माण घोटाला, शराब बिक्री घोटाला, कम्प्यूटर खरीद घोटाला और मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष में घोटाले जैसे बड़े मामले हुए. चार घोटालों की जांच बीजेपी सरकार करा चुकी है, बाकी 52 आरोप जस के तस हैं.
कथित घोटालों के इस मामले में एक बात तो साफ़ है कि राजनैतिक दल घोषणा पत्र में कई लुभावने और क्रांतिकारी किस्म के वादे तो कर देते हैं लेकिन उन वादों को पूरा कर पाना सत्ता हासिल होते ही लगता है शायद मुश्किल हो जाता है. फिर चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस
उत्तराखंड में कुपोषण के हालात पर केंद्र की चिंता के बाद राज्य सरकार हरकत में आ गई है. कितने बच्चे राज्य में कुपोषण के शिकार हैं इसका ताज़ा आंकड़ा सरकार के पास नहीं है. इसीलिए 14 नवंबर से एक सर्वे अभियान शुरू किया गया है.
सरकार ने माना है कि हालात चिंताजनक हैं. तीसरे नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में बताया गया है कि तीन वर्ष व इससे कम आयु के 42 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ था कि कुपोषण कम करने के मामले में राज्य के पास अपनी कोई कार्ययोजना नहीं हैं.
2005-06 के तीसरे नेशनल फैमिली सैंपल सर्वे के मुताबिक उत्तराखंड में
1. पांच साल से कम उम्र के 44 फीसदी बच्चे कमज़ोर कदकाठी के. इसका मतलब उन्हें पूरा पोषण नहीं मिल पाया.
2. हर पांच में से एक बच्चा, बहुत पतला है जो बीमारी या कम भोजन से ऐसा हुआ हो.
3. 38 फीसदी बच्चे कम वजन वाले जो लंबे समय से अपर्याप्त पोषण का नतीजा
4. बच्चों का न्यूट्रीश्नल स्टेटस एनएफएचएस-2 के मुकाबले सुधरा है.
5. लेकिन अंडर न्यूट्रीशन अभी भी एक बड़ी समस्या है.
6. ग्रामीण इलाकों में समस्या ज़्यादा, गरीब तबकों में ज़्यादा,
7. वयस्कों में भी 30 फीसदी महिलाएं और 28 फीसदी पुरुष कुपोषण के शिकार
8. 55 फीसदी महिलाएं एनीमिया की शिकार
इन आंकड़ों की रोशनी में अब उत्तराखंड सरकार देर से ही सही हरकत में आई है. उसका कहना है कि ताज़ा आंकड़े नहीं आए लेकिन उसने माना है कि हालात अच्छे नहीं है. इसीलिए एक सर्वे शुरू करा दिया गया है. केंद्र ने हाल में उत्तराखंड से कुपोषण को लेकर जवाब भी तलब किया था. उसका कहना था कि राज्य में न्यूट्रीशन कौंसिल भी नहीं बनी है. इस पर राज्य सरकार का कहना है कि इस पर काम शुरू हो गया है.
नैनीताल में जून 2010 में केंद्रीय महिला और बाल विकास राज्य मंत्री कृष्णा तीरथ ने संसद की सलाहकार समिति की एक बैठक बुलाई थी. जिसका विषय था महिलाओं और बच्चों में कुपोषणः समस्या और निदान. तीरथ ने भारत में कुपोषण की समस्या और इससे अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर को रेखांकित किया था. राज्य सरकार का कहना है कि उसने महिलाओं और बच्चों के लिए राज्य ने कई योजनाएं शुरू की हैं. जिसके लिए दो करोड़ रुपए से भी अधिक का बजट भी रखा गया है.
कुपोषण के मामलों को देखें तो इसकी प्रमुख वजहों में हैं गरीबी, गंदगी, एनीमिया, पौष्टिक भोजन की कमी, जागरुकता की कमी है. इसी वजह से शिशु मृत्यु दर भी राज्य में प्रति हज़ार पर 44 है., और मातृ मृत्यु दर एक लाख पर 315 की है.
सरकार ने माना है कि हालात चिंताजनक हैं. तीसरे नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में बताया गया है कि तीन वर्ष व इससे कम आयु के 42 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ था कि कुपोषण कम करने के मामले में राज्य के पास अपनी कोई कार्ययोजना नहीं हैं.
2005-06 के तीसरे नेशनल फैमिली सैंपल सर्वे के मुताबिक उत्तराखंड में
1. पांच साल से कम उम्र के 44 फीसदी बच्चे कमज़ोर कदकाठी के. इसका मतलब उन्हें पूरा पोषण नहीं मिल पाया.
2. हर पांच में से एक बच्चा, बहुत पतला है जो बीमारी या कम भोजन से ऐसा हुआ हो.
3. 38 फीसदी बच्चे कम वजन वाले जो लंबे समय से अपर्याप्त पोषण का नतीजा
4. बच्चों का न्यूट्रीश्नल स्टेटस एनएफएचएस-2 के मुकाबले सुधरा है.
5. लेकिन अंडर न्यूट्रीशन अभी भी एक बड़ी समस्या है.
6. ग्रामीण इलाकों में समस्या ज़्यादा, गरीब तबकों में ज़्यादा,
7. वयस्कों में भी 30 फीसदी महिलाएं और 28 फीसदी पुरुष कुपोषण के शिकार
8. 55 फीसदी महिलाएं एनीमिया की शिकार
इन आंकड़ों की रोशनी में अब उत्तराखंड सरकार देर से ही सही हरकत में आई है. उसका कहना है कि ताज़ा आंकड़े नहीं आए लेकिन उसने माना है कि हालात अच्छे नहीं है. इसीलिए एक सर्वे शुरू करा दिया गया है. केंद्र ने हाल में उत्तराखंड से कुपोषण को लेकर जवाब भी तलब किया था. उसका कहना था कि राज्य में न्यूट्रीशन कौंसिल भी नहीं बनी है. इस पर राज्य सरकार का कहना है कि इस पर काम शुरू हो गया है.
नैनीताल में जून 2010 में केंद्रीय महिला और बाल विकास राज्य मंत्री कृष्णा तीरथ ने संसद की सलाहकार समिति की एक बैठक बुलाई थी. जिसका विषय था महिलाओं और बच्चों में कुपोषणः समस्या और निदान. तीरथ ने भारत में कुपोषण की समस्या और इससे अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर को रेखांकित किया था. राज्य सरकार का कहना है कि उसने महिलाओं और बच्चों के लिए राज्य ने कई योजनाएं शुरू की हैं. जिसके लिए दो करोड़ रुपए से भी अधिक का बजट भी रखा गया है.
कुपोषण के मामलों को देखें तो इसकी प्रमुख वजहों में हैं गरीबी, गंदगी, एनीमिया, पौष्टिक भोजन की कमी, जागरुकता की कमी है. इसी वजह से शिशु मृत्यु दर भी राज्य में प्रति हज़ार पर 44 है., और मातृ मृत्यु दर एक लाख पर 315 की है.
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