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हिमालय की गोद में बसा सौड़ू गांव अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। पिछले साल आई आपदा ने इस गांव की सड़कों और खेतों को पूरी तरह उजाड़कर रख दिया। कई घर जमींदोज हो गए और कई मकानों पर आपदा का असर आज भी देखा जा सकता है।
देवप्रयाग तहसील के सौड़ू गांव में करीब सवा सौ परिवार निवास करते हैं। भले ही राज्य के मानचित्र में इस गांव की कोई खास पहचान न हो, लेकिन पिछले वर्ष सितम्बर में आयी आपदा के बाद यह गांव हमेशा चर्चा में रहा है। बारिश के दौरान गांव की सड़कें और खेत धंसकर उजड़ गए। गांव की सीमा में भू-धंसाव इतना अधिक था कि कई मकान क्षतिग्रस्त हो गए। कुछ मकानों पर पड़ी दरारें अभी भी आपदा के कहर को बयां कर रही हैं। घरों और आंगनों में पड़ी दरारें लोगों को आज भी आपदा की उस विनाशलीला की याद दिला रही है।
गांव का प्राकृतिक पेयजल का स्रोत भी आपदा की मार से नहीं बच सका। कई वर्षो से ग्रामीणों की प्यास बुझाने वाला पेयजल स्रोत आपदा के दौरान हुए भू-धंसाव से पूरी तरह सूख गया। आपदा के बाद सरकार ने ग्रामीणों को सहायता राशि के नाम पर तीन-तीन हजार के चेक वितरित किए लेकिन ग्रामीणों ने नुकसान अधिक होने के बात कहते हुए चेक वापस लौटा दिए। अधिकारियों ने जल्द ही भूगर्भीय सर्वेक्षण कर मुआवजा देने का आश्वासन दिया लेकिन उसके बाद न अधिकारी लौटे और न ही चेक। ग्रामीण आज भी खुले आसमान के नीचे आपदा के इस दंश को झेलने को मजबूर हैं।
'शासन को गांव के भूगर्भीय सर्वेक्षण का प्रस्ताव भेजा गया है। प्रशासन खुद मानता है कि गांव खतरे की जद में है इसलिए इसका विस्थापन किया जाना आवश्यक है। तीन हजार रुपये केवल तात्कालिक सहायता के रूप में दिए गए थे, जिन्हें लोगों ने लेने से इंकार कर दिया। जल्द ही गांव जाकर लोगों को इस सम्बन्ध में समझाने का प्रयास किया जाएगा।'
in.jagran.yahoo.com se sabhar
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