पहाड़ी इलाको में नष्ट हो रही प्राकर्तिक सुन्दरता को बचाने के लिए वर्ष 2002 में शुरू हुए भू-बैकुंठ धाम की खाली चोटियों को हरा-भरा करने की योजना विफल होती नज़र आ रही है। भू-बैकुंठ धाम की खाली चोटियों को हरा-भरा करने व एकता वन में आने वाले प्रत्येक यात्री को यात्रा को यादगार बनाने और अपने बुजुर्गो की स्मृति में पौधे रोपने की योजना को सरकारी विभाग ही पलीता लगा रहे हैं।
भू-बैकुंठ धाम की खाली चोटियों को हरा-भरा करने के लिए श्री बदरीनाथ धाम में वन विभाग ने बद्रीश एकता वन की शुरूआत की थी। इस योजना के तहत वन विभाग ने देवदर्शिनी के पास बामणी में नौ हेक्टेयर क्षेत्रफल में देश के अलग-अलग प्रदेशों से आने वाले यात्रियों के लिए भूखंड चिन्हित करने के साथ ही आरक्षित किये थे। यात्री को अपने प्रदेश के लिए आवंटित भूखंड में ही अपनी यात्रा और पूर्वजों के नाम से पौधरोपण करना था। इसके लिए यात्री को 100 रुपया शुल्क देने के साथ पौधे पर यात्री के नाम व पते की तख्ती लगनी थी। जब यह योजना शुरू हुई तो यात्रियों ने भी इसे हाथों हाथ लिया और देखते ही देखते बद्रीश एकता वन में सैकड़ों पौध रोपित हो गये। पौध रोपण के लिए न केवल मंदिर समिति बल्कि यहां के होटल, धर्मशालाओं में हर यात्री को इसके प्रति जागरूक किया जाता रहा, लेकिन दो वर्ष बाद ही वन विभाग की यह योजना लापरवाही की भेंट चढ़ गई। वर्ष 2005 में बर्फ से सड़क के किनारे बनाया गया बुकिंग काउंटर भी ध्वस्त हो गया और इसी के साथ इस महत्वाकांक्षी योजना खानापूर्ति बनकर रह गई। अब हालात यह है कि करीब छह वर्षो से बद्रीश एकता वन की यह योजना मात्र कागजों में ही चल रही है।
'बद्रीश एकता वन निश्चित ही बदरीनाथ को हरा-भरा करने के लिए एक सराहनीय प्रयास था। वर्तमान में इस वन में पौधरोपण को लेकर वह उत्साह नहीं है जो शुरूआती दौर में रहा। अब इसे फिर से हरित करने विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है।
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