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कीर्तिनगर: लोस्तू के घंडियालधार मंदिर में एक श्रद्धालु ने 106 किलो का घंटा भेंट चढ़ाया है। उत्तराखंड के किसी मंदिर में यह अब तक का सबसे अधिक वजनी घंटा है। इससे पहले केदारनाथ मंदिर में 101 किलो का घंटा चढ़ाया गया है।
विदेश में रहने वाले बडियारगढ़ पट्टी के बड़ा पाब के निवासी सुमेर सिंह पुंडीर ने अपने पिता स्व.बुद्धि सिंह पुंडीर और माता दौली देवी की स्मृति में बुधवार को यह घंटा भेंट चढ़ाया।
ढोल-दमाऊं और भंकोरों की ध्वनियों पर सुबह सैकड़ों भक्त इस घंटे को लेकर मंदिर में पहुंचे। वहां विधि-विधान से अनुष्ठान के बाद यह घंटा देवता को अर्पित किया गया। झंरगुली गांव के शंकर सिंह पुंडीर और घंडियाल देवता मंदिर समिति के व्यवस्थापक भरत सिंह बत्र्वाल ने बताया कि इस मौके पर घंटाकर्ण, हनुमान, नागराजा आदि विभिन्न देवता अवतरित हुए और उन्होंने भक्तों को आशीर्वाद दिया। उन्होंने बताया कि इस घंटे का वजन जंजीर समेत करीब सवा कुंतल है। इसे देखने के लिए रिगोली, खोंगचा, पांणब, खत्वाड़ आदि गांवों के सैकड़ों लोग सुबह से ही मंदिर में एकत्र हो गए थे। लोग इसे देखने के लिए काफी उत्सुक थे। अप्रवासी भारतीय सुमेर सिंह इस घंटे को घंडियाल देवता की जात के दौरान ही मंदिर में अर्पित करना चाहते थे, किंतु उन्हें यहां आने का अवसर नहीं मिल पाया।
घंटे को अर्पित कराने के दौरान मंदिर में मेले जैसा माहौल था। ढोल-दमाऊं और भंकोरों की ध्वनियां दिनभर मंदिर क्षेत्र में गूंजती रहीं। इससे एक बार महाजात की याद ताजा हो गई। गौरतलब है कि अभी इस मंदिर में करीब एक हजार घंटे हैं।
विदेश में रहने वाले बडियारगढ़ पट्टी के बड़ा पाब के निवासी सुमेर सिंह पुंडीर ने अपने पिता स्व.बुद्धि सिंह पुंडीर और माता दौली देवी की स्मृति में बुधवार को यह घंटा भेंट चढ़ाया।
ढोल-दमाऊं और भंकोरों की ध्वनियों पर सुबह सैकड़ों भक्त इस घंटे को लेकर मंदिर में पहुंचे। वहां विधि-विधान से अनुष्ठान के बाद यह घंटा देवता को अर्पित किया गया। झंरगुली गांव के शंकर सिंह पुंडीर और घंडियाल देवता मंदिर समिति के व्यवस्थापक भरत सिंह बत्र्वाल ने बताया कि इस मौके पर घंटाकर्ण, हनुमान, नागराजा आदि विभिन्न देवता अवतरित हुए और उन्होंने भक्तों को आशीर्वाद दिया। उन्होंने बताया कि इस घंटे का वजन जंजीर समेत करीब सवा कुंतल है। इसे देखने के लिए रिगोली, खोंगचा, पांणब, खत्वाड़ आदि गांवों के सैकड़ों लोग सुबह से ही मंदिर में एकत्र हो गए थे। लोग इसे देखने के लिए काफी उत्सुक थे। अप्रवासी भारतीय सुमेर सिंह इस घंटे को घंडियाल देवता की जात के दौरान ही मंदिर में अर्पित करना चाहते थे, किंतु उन्हें यहां आने का अवसर नहीं मिल पाया।
घंटे को अर्पित कराने के दौरान मंदिर में मेले जैसा माहौल था। ढोल-दमाऊं और भंकोरों की ध्वनियां दिनभर मंदिर क्षेत्र में गूंजती रहीं। इससे एक बार महाजात की याद ताजा हो गई। गौरतलब है कि अभी इस मंदिर में करीब एक हजार घंटे हैं।
in.jagra.yahoo.com se sabhar
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