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Saturday, January 29, 2011

द्वितीय राजभाषा को पुष्पित करें संस्कृतज्ञ

उत्तरांचल संस्कृत अकादमी की ओर से संस्कृत भवन में बृहस्पतिवार को राष्ट्रीय संस्कृत कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। शाम तक चले कवि सम्मेलन में कवियों ने राष्ट्रभक्ति और संस्कृत सेवापरक सरस कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कवि सम्मेलन का शुभारंभ अतिथियों और आयोजकों ने दीप प्रज्जवलित कर किया। काव्य पाठ प्रारंभ करने से पहले आंध्रप्रदेश से आए संस्कृत विद्वान शतावधानी डा. दौर्बल प्रभाकर शर्मा ने कहा कि उत्तराखंड सरकार ने संस्कृत को द्वितीय राजभाषा घोषित किया गया है, अब इसे पल्लवित और पुष्पित करने का काम संस्कृतज्ञों का है। उन्होंने उपस्थित कवियों और विद्वानों की ओर से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर भी दिए। काव्य पाठ प्रारंभ करते हुए आचार्य बुद्धिवल्लभ शास्त्री ने भ्रष्टाचारिगणानां तंत्रं भारतीयगणतंत्रम् कविता के माध्यम से बताया कि किस प्रकार भ्रष्टाचारी लोग हमारे देश को खोखला कर रहे हैं। डा. रामेश्वर दत्त शर्मा ने अंतः काकाः बहिः हंसाः धूर्ताः जानंति वशीकरणमंत्रान् कविता के माध्यम से बताया कि आजकल सज्जनता को नष्ट कर धूर्तता अपने पांव फैला रही है। उत्तरांचल संस्कृत अकादमी के सचिव डा. बुद्धदेव शर्मा ने प्रियैषा संस्कृता भाषा सदा सर्वैः जनैः सेव्या के माध्यम से कहा कि हमारा लक्ष्य है कि संस्कृत भारत राष्ट्रभाषा बने। उत्तराखंड संस्कृत विवि के सहायक आचार्य डा. अरविंद नारायण मिश्र ने सर्वमपि, दृष्टं मेलायाम् पंक्तियों के माध्यम से विश्व संस्कृत पुस्तक मेले की विशेषताओं का वर्णन किया।
इनके अलावा डा. प्रशस्यमित्र शास्त्री, डा. जनार्दन प्रसाद पांडेय, डा. नरेश बत्रा, प्रो. बलेदवानंद सागर, डा. जीतराम, डा. प्रकाश पंत, डा. नवलता और जगदीश चंद्र सेमवाल आदि ने भी काव्यपाठ किया।
इस अवसर पर दिल्ली संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष डा. श्रीकृष्ण सेमवाल, हरियाणा संस्कृत अकादमी के निदेशक प्रो. रामेश्वरदत्त शर्मा, उत्तराखंड संस्कृत विवि की कुलपति डा. सुधा पांडे, रत्नेश सिंह, डा. हरीश गुरुरानी, देवीप्रसाद उनियाल आदि उपस्थित थे। 
amarujala.com se sabhar

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