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सतावर की खेती राज्य के किसानों के लिए समृद्धि के द्वार खोल रही है। फार्मा कंपनियों में इसके बढ़ते उपयोग के कारण बाजार में इसकी खासी मांग है। राज्य के मैदानी क्षेत्रों के साथ-साथ पहाड़ी क्षेत्रों में भी इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। हाई एप्टीट्यूड प्लान्ट फिजियोलॉजी और रिसर्च सेंटर (हेप्रेक) के विशेषज्ञ पहाड़ों के लिए अनुकूल सतावर की किस्मों पर काम कर रहे हैं।
600 से 1500 मीटर की ऊंचाई पर उगने वाली सतावर का बॉटनिकल नाम स्प्रेगस रेसीमोसस है। मूली के आकार का दिखने वाली सतावर का प्रयोग पशुओं की दवा, महिलाओं की दवा और शक्तिवर्द्धक दवाओं को बनाने में किया जाता है। महिलाओं की एनीमिया, हार्मोनल डिसऑडर और संतानोंत्पत्ति सम्बन्धी बीमारियों में इसका प्रयोग लाभकारी है। आयुर्वेद में इसका उपयोग वात पित्त और कफ में लाभकारी बताया जाता है। नारायण तेल, विष्णु तेल जैसे आयुर्वेदिक उत्पादों में इसका बहुतायत से प्रयोग किया जाता है। इसकी कोंपलों का सूप शक्तिवर्द्धक माना जाता है और बड़े-बड़े होटलों में महंगे दामों पर बिकता है। वर्तमान में पूरे देश में सतावर की सालाना मांग दो हजार से पांच हजार मीट्रिक टन तक है। जबकि इसके आधे का उत्पादन भी नहीं हो पा रहा है। सतावर की अधिकांश आपूर्ति नेपाल से की जाती है। राज्य के नेपाल सीमा से लगे टनकपुर, वनवसा, चंपावत और उधमसिंहनगर के कई हिस्सों में इसकी खेती की जा रही है। इसकी एक फसल के तैयार होने में 18 से 20 माह तक का समय लगता है। हेप्रेक के वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. विजयकांत पुरोहित, रिसर्च एसोसिएट डॉ. राजीव वशिष्ठ और डॉ. राजेन्द्र चौहान राज्य के उच्च शिखरीय क्षेत्रों में सतावर समेत अन्य जड़ी बूटियों की खेती पर कार्य कर रहे हैं। उनके अनुसार राज्य में सतावर की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं। राज्य के तेज धूप वाली ढ़लानों पर जहां औसत तापमान 20 से 35 डिग्री के बीच होता है, वहां इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। कच्चा सतावर प्रतिकिलो 50 से 70 रुपए में बिक रहा है। जबकि उबालकर सुखाया और साफ किया गया पीला सतावर 300 से 500 रुपए प्रतिकिलो बिक रहा है। डाबर इंडिया लिमिटेड, इंडिया हर्ब्स, रामनगर मोहान की इंडियन मेडिसनल फार्मास्यूटिकल कंपनी लिमिटेड और सहारनपुर की हर्बल ड्रग कंपनी राज्य से सतावर खरीद रही है।
'राज्य में सतावर की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं। इसके अच्छे दामों के कारण किसान भी इसकी खेती में रुचि ले रहे हैं। राष्ट्रीय जड़ी बूटी मिशन के अंतर्गत इसकी खेती के लिए चार से 20 लाख रुपए का अनुदान भी दिया जा रहा है।' - डॉ. विजयकांत पुरोहित, वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी हेप्रेक
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