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Saturday, January 29, 2011

जनसाँख्यिकी

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उत्तराखण्ड के लोग, कुमाऊँनी लोग, और गढ़वाली लोग
सुदर्शन सिंह रावत | २००१ की जनगणना के अनुसार, उत्तराखण्ड की जनसंख्या ८४,८९,३४९ है जिसमें ४३,२५,९२४ पुरुष और ९१,६३,८२५ स्त्रियाँ हैं। इसमें सर्वाधिक जनसंख्या राजधानी देहरादून की ५,३०,२६३ है।[१९] २०११ की जनगणना तक जनसंख्या का १ करोड़ तक हो जाने का अनुमान है। मैदानी क्षेत्रों के जिले पर्वतीय जिलों की अपेक्षा अधिक जनसंख्या घनत्व वाले हैं। राज्य के मात्र चार सर्वाधिक जनसंख्या वाले जिलों में राज्य की आधे से अधिक जनसंख्या निवास करती हैं। जिलों में जनसंख्या का आकार २ लाख से लेकर अधिकतम १४ लाख तक है। राज्य की दशकवार वृद्धि दर १९९१-२००१ में १९.२ प्रतिशत रही। उत्तराखण्ड के मूल निवासियों को कुमाऊँनी या गढ़वाली कहा जाता है जो प्रदेश के दो मण्डलों कुमाऊँ और गढ़वाल में रहते हैं। एक अन्य श्रेणी हैं गुज्जर, जो एक प्रकार के चरवाहे हैं और दक्षिण-पश्चिमी तराई क्षेत्र में रहते हैं।

मध्य पहाड़ी की दो बोलियाँ कुमाऊँनी और गढ़वाली, क्रमशः कुमाऊँ और गढ़वाल में बोली जाती हैं। जौनसारी और भोटिया दो अन्य बोलियाँ, जनजाति समुदायों द्वारा क्रमशः पश्चिम और उत्तर में बोली जाती हैं। लेकिन हिन्दी पूरे प्रदेश में बोली और समझी जाती है और नगरीय जनसंख्या अधिकतर हिन्दी ही बोलती है।
उत्तराखण्ड में धार्मिक समूह
धार्मिक समूह             प्रतिशत[२०]    
हिन्दू                           85.00%
मुसलमान                  11.92%
सिख                          2.49%
ईसाई                         0.32%
बौद्ध                           0.15%
जैन                            0.11%
अन्य                          0.01%

शेष भारत के समान ही उत्तराखण्ड में हिन्दू बहुमत में हैं और कुल जनसंख्या का ८५% हैं, इसके बाद मुसलमान १२%, सिख २.५%, और अन्य धर्मावलम्बी ०.५% हैं। यहाँ लिंगानुपात प्रति १००० पुरुषों पर ९६४, और साक्षरता दर ७२.२८%[२१] है। राज्य के बड़े नगर हैं देहरादून (५,३०,२६३), हरिद्वार (२,२०,७६७), हल्द्वानी (१,५८,८९६), रुड़की (१,१५,२७८), और रुद्रपुर (८८,७२०)। राज्य सरकार द्वारा १५,६२० ग्रामों और ८१ नगरीय क्षेत्रों की पहचान की गई है।
कुमाऊँ और गढ़वाल के इतिहासकारों का कहना है की आरम्भ में यहाँ केवल तीन जातियाँ थी राजपूत, ब्राह्मण, और शिल्पकार। राजपूतों का मुख्य व्यवसाय ज़मीदारी और कानून-व्यस्था बनाए रखना था। ब्राह्मणों का मुख्य व्यवसाय था मन्दिरों और धार्मिक अवसरों पर धार्मिक अनुष्ठानों को कराना। शिल्प्कार मुख्यतः राजपूतों के लिए काम किया करते थे और हथशिल्पी में दक्ष थे। राजपूतों द्वारा दो उपनामों रावत और नेगी का उपयोग किया जाता है।

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