http://garhwalbati.blogspot.com
दृष्टिहीनों को सरकारी नौकरी देने के मामले में सरकार की नाफरमानी कहा जाए या चंद अधिकारियों का उपेक्षात्मक रवैया. सच यह है कि हर स्तर पर उनके साथ दोयम दज्रे का ही व्यवहार हुआ है.
यहां बात राज्य के दृष्टिहीनों को सरकारी नौकरियों में मिलने वाले आरक्षण की है. आरक्षण के नाम पर सरकार के फरमान चाहे कुछ भी हों लेकिन समय समय पर विभिन्न विभागों ने नौकरियों के लिए आवेदन पत्र जारी किये, खानापूर्ति की और अन्य को नौकरी दे दी. इन नौकरियों में हमेशा ही दृष्टिहीनों के कोटे पर डाका डाला गया है.
शिक्षा विभाग हो या अन्य कोई विभाग, हर किसी ने दृष्टिहीनों के कोटे पर अन्य विकलांग की भर्ती कर औपचारिकता निभा दी. दृष्टिहीनों को सरकारी नौकरियों में तवज्जो न मिलने के लिए जितनी दोषी सरकार है उतनी ही दोषी उनके रहनुमा भी हैं.
राष्ट्रीय स्तर पर दृष्टिहीनों के अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय दृष्टिहीन संघ का गठन किया गया है. उत्तराखंड बनने के बाद राज्य में भी संघ की प्रदेश स्तरीय शाखा तैयार की गयी. इस शाखा के महासचिव पीताम्बर सिंह चौहान का दावा है कि दृष्टिहीनों को सरकारी नौकरी में आरक्षण को लेकर कई बार शासन से वार्ता की गयी.
विभागों में आवेदन पत्र निकलने के दौरान भी हक की लड़ाई के लिए प्रदर्शन किया गया. गौर करने वाली बात है कि 2009 में विकलांग आयुक्त द्वारा राज्य के विकलांगों की गणना का कार्य नए सिरे से शुरू किया गया.
इस गणना की विशेषता यह थी कि इसमें विकलांगों की शिक्षा, आय, उम्र, क्षेत्र को शामिल करते हुए कई जानकारियों का अलग-अलग रिकार्ड तैयार किया जाना था. इस योजना को शुरू हुए एक साल से भी अधिक का समय बीतने के बावजूद अभी तक इस योजना का अता-पता नहीं है.
दृष्टिहीनों की लगातार उपेक्षा
राष्ट्रीय दृष्टिहीन संघ के महासचिव पीताम्बर सिंह चौहान का कहना है कि सरकार ने अब तक कितने दृष्टिहीनों को सरकारी सेवा में लिया है इसका कहीं कोई भी व्योरा उपलब्ध नहीं है. बीते रोज शासन के अधिकारियों के साथ हुयी बैठक में जानकारी जुटाने की बात कही जा रही है.
गौरतलब है कि 2004 में शिक्षा विभाग ने 1100 पद के लिए आवेदन मांगे थे. इसमें दृष्टिहीनों के कोटे से एक भी व्यक्ति को नौकरी नहीं मिली जबकि सरकार द्वारा एक फीसद के हिसाब से 11 लोगों को नौकरी दी जानी थी. इसी प्रकार 2006 में 4115 एलटी की पोस्ट निकाली गयी. इसमें 41 दृष्टिहीनों को नौकरी मिलनी थी जबकि केवल आठ को ही नौकरी देकर खानापूर्ति कर दी गयी|
न्यायालय ने दिया निर्णय
नेत्रहीनों को सरकारी नौकरियों में शामिल करने संबंधी मांग को लेकर संघ की ओर से न्यायालय में याचिका दायर की गयी थी. 26 नवम्बर को इस संबंध में फैसला आया है. इसके अनुसार राज्य सरकार को 1997 से नेत्रहीनों का बैकलॉग पूरा करना होगा. इतना ही नहीं इस दिशा में सरकार ने किस स्तर तक कार्रवाई की है 1 मार्च को इसकी जानकारी न्यायालय को देनी होगी|
देहरादून में दस साल बाद भी दृष्टिहीन अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
दस सालों से ‘हक’ के लिए संघर्ष कर रहे दृष्टिहीन कितनों को मिली नौकरी सरकार के पास नहीं जानकारी
दस सालों से ‘हक’ के लिए संघर्ष कर रहे दृष्टिहीन कितनों को मिली नौकरी सरकार के पास नहीं जानकारी
दृष्टिहीनों को सरकारी नौकरी देने के मामले में सरकार की नाफरमानी कहा जाए या चंद अधिकारियों का उपेक्षात्मक रवैया. सच यह है कि हर स्तर पर उनके साथ दोयम दज्रे का ही व्यवहार हुआ है.
यहां बात राज्य के दृष्टिहीनों को सरकारी नौकरियों में मिलने वाले आरक्षण की है. आरक्षण के नाम पर सरकार के फरमान चाहे कुछ भी हों लेकिन समय समय पर विभिन्न विभागों ने नौकरियों के लिए आवेदन पत्र जारी किये, खानापूर्ति की और अन्य को नौकरी दे दी. इन नौकरियों में हमेशा ही दृष्टिहीनों के कोटे पर डाका डाला गया है.
शिक्षा विभाग हो या अन्य कोई विभाग, हर किसी ने दृष्टिहीनों के कोटे पर अन्य विकलांग की भर्ती कर औपचारिकता निभा दी. दृष्टिहीनों को सरकारी नौकरियों में तवज्जो न मिलने के लिए जितनी दोषी सरकार है उतनी ही दोषी उनके रहनुमा भी हैं.
राष्ट्रीय स्तर पर दृष्टिहीनों के अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय दृष्टिहीन संघ का गठन किया गया है. उत्तराखंड बनने के बाद राज्य में भी संघ की प्रदेश स्तरीय शाखा तैयार की गयी. इस शाखा के महासचिव पीताम्बर सिंह चौहान का दावा है कि दृष्टिहीनों को सरकारी नौकरी में आरक्षण को लेकर कई बार शासन से वार्ता की गयी.
विभागों में आवेदन पत्र निकलने के दौरान भी हक की लड़ाई के लिए प्रदर्शन किया गया. गौर करने वाली बात है कि 2009 में विकलांग आयुक्त द्वारा राज्य के विकलांगों की गणना का कार्य नए सिरे से शुरू किया गया.
इस गणना की विशेषता यह थी कि इसमें विकलांगों की शिक्षा, आय, उम्र, क्षेत्र को शामिल करते हुए कई जानकारियों का अलग-अलग रिकार्ड तैयार किया जाना था. इस योजना को शुरू हुए एक साल से भी अधिक का समय बीतने के बावजूद अभी तक इस योजना का अता-पता नहीं है.
दृष्टिहीनों की लगातार उपेक्षा
राष्ट्रीय दृष्टिहीन संघ के महासचिव पीताम्बर सिंह चौहान का कहना है कि सरकार ने अब तक कितने दृष्टिहीनों को सरकारी सेवा में लिया है इसका कहीं कोई भी व्योरा उपलब्ध नहीं है. बीते रोज शासन के अधिकारियों के साथ हुयी बैठक में जानकारी जुटाने की बात कही जा रही है.
गौरतलब है कि 2004 में शिक्षा विभाग ने 1100 पद के लिए आवेदन मांगे थे. इसमें दृष्टिहीनों के कोटे से एक भी व्यक्ति को नौकरी नहीं मिली जबकि सरकार द्वारा एक फीसद के हिसाब से 11 लोगों को नौकरी दी जानी थी. इसी प्रकार 2006 में 4115 एलटी की पोस्ट निकाली गयी. इसमें 41 दृष्टिहीनों को नौकरी मिलनी थी जबकि केवल आठ को ही नौकरी देकर खानापूर्ति कर दी गयी|
न्यायालय ने दिया निर्णय
नेत्रहीनों को सरकारी नौकरियों में शामिल करने संबंधी मांग को लेकर संघ की ओर से न्यायालय में याचिका दायर की गयी थी. 26 नवम्बर को इस संबंध में फैसला आया है. इसके अनुसार राज्य सरकार को 1997 से नेत्रहीनों का बैकलॉग पूरा करना होगा. इतना ही नहीं इस दिशा में सरकार ने किस स्तर तक कार्रवाई की है 1 मार्च को इसकी जानकारी न्यायालय को देनी होगी|
samaylive.com se sabhar
No comments:
Post a Comment
thank for connect to garhwali bati