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Sunday, January 2, 2011

उत्तराखंड भाजपा में वर्चस्व की लड़ाई

उत्तराखंड  भाजपा में वर्चस्व की लड़ाई 
(सुदर्शन सिंह रावत ) रामदेव बाबा और मुख्यमंत्री  निशंक  का प्रेम  व  नजदिकियां जग जाहिर है रामदेव बाबा द्वारा लगया गई  भ्रष्टाचार का आरोप में कितनी  सचाई  है इतना  बबाल होने  के बाद  भी अभी तक सचाई  सामने नहीं आई इतना  जरूर  है की  योग गुरु बाबा रामदेव के नये शिगूफे ने उत्तराखण्ड भाजपा  के शीर्ष अंदर  मचे घमासान को सामने ला दिया है। रामदेव  बाबा ने गत्‌ सप्ताह यह आरोप लगा लगाया  कि  उनसे लगभग दो वर्ष पूर्व दो करोड़ की रिश्वत मांगी गई थी जिसे इस आरोप ने उत्तराखंड की  राजनिति में सनसनी  मच गई है   पूर्व मुख्यमंत्री  भुवनचंद खंडूरी  की  छवि साफ़ सुथरी  मानी जाती  है गौरतलब है कि योग गुरु बाबा रामदेव ने अपने एक योग कार्यक्रम के दौरान यह कह डाला कि दो साल पूर्व उनके संस्थान के भू उपयोग परिवर्तन के मामले में तत्कालीन उत्तराखण्ड सरकार के एक मंत्री ने उनसे दो करोड़ की रिश्वत मांगी। वह इससे इतने दुखी हुये कि स्वयं उस मंत्री की शिकायत करने तत्कालीन मुख्यमंत्री से मिले थे। लेकिन उन्हे और भी दुख तथा हैरत हुई कि जब मुख्यमंत्री ने भी यह कहा कि उक्त मंत्री को उनसे सीधे रिश्वत नही मांगनी चाहिए थी बल्कि अपने ट्रस्ट के लिए  दान  मांगना  चाहिये था योग गुरु बाबा रामदेव के बयान के सामने आने के अगले ही दिन पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खण्डूड़ी ने भी पत्रकार वार्ता  की पुर्व मुख्यमंत्री  कहा कि बाबा रामदेव ने जो समय बताया है उस से तो लगता है कि उस वक्त वह राज्य के मुख्यमंत्री थे। इस लिये वे स्थिति स्पष्ट करने के लिये प्रेस वार्ता कर रहे हैं। खण्डूड़ी ने बाबा रामदेव के बयान को सिरे से खारिज करते हुये उन्हे चुनौती दे डाली कि बाबा उक्त मंत्री का नाम बतायें और  उनसे कब मिलने आये और कब उन्होने उक्त मंत्री की शिकायत उनसे की वह समय और तारीख बतायें। ऐसा नहीं करने पर उन्होंने बाबा पर मानहानि का दावा करने की बात कही। इसी प्रेस वार्ता में भुवन चंद्र खण्डूड़ी ने यह भी कह कर राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी कि जबसे वे मुख्यमंत्री के पद से हटे हैं उनके खिलाफ साजिश रची जा रही है और उनकी छवि को खराब  करने का एक माहौल खड़ा किया जा रहा है।  वर्तमान में राज्य में भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं उससे प्रदेश का नाम खराब हो रहा है और साथ  में सुझवा  दिया कि  इन सभी मामलों की किसी स्वतंत्र  संस्था से जांच कराई जाये  भाजपा का एक खेमा निशंक और रामदेव के मजबूत रिश्तों से जोड़ कर देख रहा है। बाबा रामदेव के बयान की अंदरूनी हकीकत चाहे जो भी हो पर जिस चालाकी से उन्होंने मंत्री का नाम नहीं बताया और समय का जो अंतराल बताया गया उससे तो साफ ही हो जाता है कि बाबा का इशारा तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खण्डूड़ी और राजस्व मंत्री दिवाकर भट्ट की तरफ है।
दिवाकर भट्ट उत्तराखण्ड क्रांति दल के कोटे से मंत्री बने हैं।  उक्रांद का रुख हमेशा पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खण्डूडी के पक्ष में नरम रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खण्डूड़ी
और दिवाकर भट्ट के आपसी  रिश्तौ में घनिष्टता  थी   इसी के चलते खण्डूड़ी सरकार में दिवाकर भट्ट को शहरी विकास और  राजस्व मंत्रालय जैसे भारी भरकम मंत्रालय मिले थे। भट्ट के दबाव के चलते खण्डूड़ी सरकार ने दो माह के भीतर ही प्रदेश में नया भू-कानून भी लागू किया जिसका भाजपा के भीतर भारी विरोध हुआ विरोध के बबजूद भी   उक्रांद और खण्डूड़ी के बीच बेहतर तालमेल बना रहा   अचानक भाजपा ने खण्डूड़ी को हटा कर रमेश पोखरियाल 'निशंक' को मुख्यमंत्री बना दिया। इसके बाद उक्रांद और भाजपा के रिश्तों में खटास आने लगी। । सबसे पहले दिवाकर भट्ट से शहरी विकास जैसा भारी भरकम मंत्रालय वापस लिया गया। निशंक सरकार उक्रांद के विधायकों की भी अनदेखी करती रही है जबकि खण्डूड़ी सरकार में उक्रांद के विधायकों की बातें सुनी जाती थीं। उनके द्वारा प्रस्तावित योजनाओं पर काम भी होता था।  आम लोगो के बीच यह भी चर्चा  है कि  रामदेव बाबा  और पूर्व सीएम खण्डूड़ी के सक्त रैवया के कारण संबंध कभी भी प्रगाड़ नहीं रहे। एनडी तिवारी के समय बाबा की पकड़ सरकार पर खासी मजबूत थी। तिवारी सरकार के समय राज्य की बेशकीमती भूमि बाबा रामदेव के संस्थान को आंवटित की गयी थी और तमाम तरह की सुविधायें प्रदान की गयीं। खण्डूड़ी सरकार के समय में भी बाबा रामदेव ने सरकारी और ग्राम सभा की भूमि अपने संस्थान के लिये मांगी। उन्हे पूरी उम्मीद थी कि खण्डूड़ी सरकार  भी उन्हें पूर्व की ही तरह भूमि दे दी जायेगी।  इस  प्रस्ताव पर खण्डूड़ी  सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया फिर रामदेव  बाबा ने भाजपा के बड़े नेताओ  व  संगठन के नेताओं  से शिकायत  की  सगठन  के दबाब में आकर खण्डूड़ी सरकार ने कुछ भूमि बाबा रामदेव के संस्थान को दी लेकिन ग्रामसभा की भूमि को देने से साफ इंकार कर दिया। इस भूमि के लिये स्थानीय किसानों ने  हरिद्वार में भी बड़ा आंदोलन किया था।

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