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कहते हैं कि बिना हरि इच्छा अन्न का एक दाना भी ग्रहण नहीं कर सकते। ऐसा ही रविवार को हुआ, जब मजदूरी को जा रहे श्रमिकों के खाने के टिफन खेत में पड़े रह गये और खाने वाले इस जहां से विदा हो गये।
फुरकान के परिजनों ने दोनों बेटियों का व सबीना ने बच्चों के लिए खाना बनाने के बाद खुद का खाना रखा था। कौसर जहां ने बहनों के टिफिन में ही अपना खाना लगा दिया। सभी दोपहर में एक साथ खाना खाते थे। रविवार को भोजन करने का उन्हें अल्लाह का हुक्म नहीं था। तभी तो प्लास्टिक के थैले में रखे भोजन के टिफिन खुल भी नहीं पाये। भोजन के लिए वे परिवार को छोड़ गर्मी के दिनों मात्र सौ-सवा सौ रुपये की दिहाड़ी की खातिर मजदूरी करने आती थीं। हादसे का शिकार सबीना पत्नी रहीस के छह बच्चे हैं, जिन्हें पालने के लिए पति-पत्नी मेहनत-मजदूरी करने में जुटे थे। भरे गले से रहीस बोला कि अब बच्चों को कौन पालेगा। उसकी एक वर्ष की दुधमुंही बच्ची सहित तीन लड़कियां और दो लड़के हैं। मृतक कौसर की तीन छोटी बहनें व दो भाई हैं। गुलशन व गुलकशां, सबीना के पति रहीस की बहन जमीला की बेटियां हैं और कौसर की भांजियां। चारों मौतें एक ही परिवार के रिश्तेदारों की हैं।
गमगीन माहौल में शव सुपुर्दे-खाक
सुल्तानपुर पट्टी: देर रात पोस्टमार्टम के बाद ग्राम लाड़पुर खेमरा के उप गांव मलंगों के मझरे में चार शव एक साथ पहुंचे तो कोहराम मच गया। ग्राम प्रधान सुंदरलाल के प्रयासों से सभी को देर सायं दफन किया गया। इस दौरान पूरे गांव में अजीब सी खामोशी थी। ग्रामीणों के अनुसार एक साथ चार मौतें पहली बार देखने को मिली हैं।
in.jagran.yahoo.com se sabhar
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