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देहरादून नगर के झंडा मुहल्ले में एक पवित्र धार्मिक जगह है, श्री गुरु राम राय जी का दरबार। यह दरबार तकरीबन साढ़े तीन सौ साल पुराना है। यह दरबार वास्तुकला और आकर्षक भित्तिचित्रों का भी एक नायाब नमूना है। दरबार के संस्थापक श्री गुरु राम राय सिखों के सातवें गुरु श्री गुरु हर राय जी के बड़े पुत्र थे। ऐतिहासिक कथनों के अनुसार वर्ष 1676 में दून के कांडली नामक जगह में उन्हाेंने पहला पड़ाव डाला था, जो छोटी टोंस नदी के किनारे है। यहां श्री गुरुराम राय जी ने साधना की और बाबा बालहास जी से उदासीन मत और दर्शन की दीक्षा ली।
कुछ समय तक यहां रहने के उपरांत उन्होंने खुड़बुड़ा गांव में वर्तमान दरबार स्थल पर अपना डेरा डाला। गढ़वाल के तत्कालीन राजा फतेहशाह ने गुरु राम राय जी के व्यक्तित्व और दर्शन से प्रभावित होकर उन्हें बहुमूल्य उपहार सहित खुड़बुड़ा, राजपुर और चामासारी गांव दान में दिए। श्री गुरु राम राय जी के दून में डेरा स्थापित करने के बाद इस स्थान को डेरादूण/डेरादून और बाद में देहरादून कहा जाने लगा। राजा फतेहशाह के पोते राजा प्रदीप शाह ने भी दरबार साहिब को चार अन्य गांव धामावाला, मिंयावाला, छरतावाला और पंडितवाड़ी दान में दिए।
श्री गुरु राम राय जी का अधिकांश समय दीन-दुखियों की सेवा में बीतता था। उनके दरबार में लोगों की भीड़ लगी रहती थी। सुदूर प्रांतों के हजारों लोग उनके शिष्य थे। औरंगजेब जैसा कट्टर बादशाह भी उनसे अत्यंत प्रभावित था। चार सितंबर, 1967 को श्री गुरु राम राय जी के शरीर त्यागने के बाद उनकी पत्नी माता पंजाब कौर ने दरबार की देखरेख की व्यवस्था अपने हाथ में ली। दरबार की व्यवस्था के लिए यहां महंत परंपरा तय है। वर्तमान में देवेंद्र दास जी दसवें महंत के रूप में इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
गुरु राम राय जी की समाधि और उनका पलंग मुख्य दरबार साहिब (गुरुद्वारा/मंदिर) में है। पश्चिमी दिशा वाले मुख्यद्वार के समीप एक चबूतरे पर तकरीबन सौ फीट ऊंचे झंडा साहब जी प्रतिष्ठित हैं। परंपरानुसार गुरु राम राय जी के जन्मदिन और उनके दून आगमन की खुशी में हर साल झंडा जी का मेला लगता है, जो 20-22 दिनों तक चलता है। चैत कृष्णपक्ष की पंचमी यानी होली के पांचवें दिन नया झंडा चढ़ाने की परंपरा है। इस दिन सुबह झंडे जी में विधिवत पूजा अर्चना के बाद नया गिलाफ चढ़ाया जाता है। दरबार साहिब की आस्था के प्रतीक इस झंडे जी में श्रद्धालुओं द्वारा रंगीन दुपट्टा और रूमाल आदि चढ़ाकर मन्नतें मांगी जाती हैं। झंडा चढ़ाने के दिन उत्तराखंड और इसके पड़ोसी राज्यों से हजारों की तादाद में श्रद्धालु उल्लासपूर्वक दरबार साहिब में एकत्रित होते हैं।
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देहरादून नगर के झंडा मुहल्ले में एक पवित्र धार्मिक जगह है, श्री गुरु राम राय जी का दरबार। यह दरबार तकरीबन साढ़े तीन सौ साल पुराना है। यह दरबार वास्तुकला और आकर्षक भित्तिचित्रों का भी एक नायाब नमूना है। दरबार के संस्थापक श्री गुरु राम राय सिखों के सातवें गुरु श्री गुरु हर राय जी के बड़े पुत्र थे। ऐतिहासिक कथनों के अनुसार वर्ष 1676 में दून के कांडली नामक जगह में उन्हाेंने पहला पड़ाव डाला था, जो छोटी टोंस नदी के किनारे है। यहां श्री गुरुराम राय जी ने साधना की और बाबा बालहास जी से उदासीन मत और दर्शन की दीक्षा ली।
कुछ समय तक यहां रहने के उपरांत उन्होंने खुड़बुड़ा गांव में वर्तमान दरबार स्थल पर अपना डेरा डाला। गढ़वाल के तत्कालीन राजा फतेहशाह ने गुरु राम राय जी के व्यक्तित्व और दर्शन से प्रभावित होकर उन्हें बहुमूल्य उपहार सहित खुड़बुड़ा, राजपुर और चामासारी गांव दान में दिए। श्री गुरु राम राय जी के दून में डेरा स्थापित करने के बाद इस स्थान को डेरादूण/डेरादून और बाद में देहरादून कहा जाने लगा। राजा फतेहशाह के पोते राजा प्रदीप शाह ने भी दरबार साहिब को चार अन्य गांव धामावाला, मिंयावाला, छरतावाला और पंडितवाड़ी दान में दिए।
श्री गुरु राम राय जी का अधिकांश समय दीन-दुखियों की सेवा में बीतता था। उनके दरबार में लोगों की भीड़ लगी रहती थी। सुदूर प्रांतों के हजारों लोग उनके शिष्य थे। औरंगजेब जैसा कट्टर बादशाह भी उनसे अत्यंत प्रभावित था। चार सितंबर, 1967 को श्री गुरु राम राय जी के शरीर त्यागने के बाद उनकी पत्नी माता पंजाब कौर ने दरबार की देखरेख की व्यवस्था अपने हाथ में ली। दरबार की व्यवस्था के लिए यहां महंत परंपरा तय है। वर्तमान में देवेंद्र दास जी दसवें महंत के रूप में इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
गुरु राम राय जी की समाधि और उनका पलंग मुख्य दरबार साहिब (गुरुद्वारा/मंदिर) में है। पश्चिमी दिशा वाले मुख्यद्वार के समीप एक चबूतरे पर तकरीबन सौ फीट ऊंचे झंडा साहब जी प्रतिष्ठित हैं। परंपरानुसार गुरु राम राय जी के जन्मदिन और उनके दून आगमन की खुशी में हर साल झंडा जी का मेला लगता है, जो 20-22 दिनों तक चलता है। चैत कृष्णपक्ष की पंचमी यानी होली के पांचवें दिन नया झंडा चढ़ाने की परंपरा है। इस दिन सुबह झंडे जी में विधिवत पूजा अर्चना के बाद नया गिलाफ चढ़ाया जाता है। दरबार साहिब की आस्था के प्रतीक इस झंडे जी में श्रद्धालुओं द्वारा रंगीन दुपट्टा और रूमाल आदि चढ़ाकर मन्नतें मांगी जाती हैं। झंडा चढ़ाने के दिन उत्तराखंड और इसके पड़ोसी राज्यों से हजारों की तादाद में श्रद्धालु उल्लासपूर्वक दरबार साहिब में एकत्रित होते हैं।
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