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जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम सोमवार से शुरू हुआ। इसमें काश्तकारों को जड़ी-बूटी से जुड़ी विभिन्न जानकारियां प्रदान की जाएगी।
गढ़वाल विश्वविद्यालय के हैप्रेक सभागार में आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन कुलपति प्रो. श्रीकृष्ण सिंह ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हिमालय के बिना जड़ी-बूटी की अवधारणा पूरी नहीं हो सकती। जैव विविधता से परिपूर्ण क्षेत्र में इनके विकास एवं संवर्द्धन की सबसे अधिक संभावनाएं हैं। उन्होंने विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी कई जड़ी-बूटियों पर चिंता व्यक्त करते हुए इनके संवर्द्धन की आवश्यकता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जड़ी-बूटी, वन पर्यावरण और वनस्पतियों से जुड़े शोधों का समाज तक पहुंचना जरूरी है। हैप्रेक के निदेशक प्रो. एआर नौटियाल ने कहा कि 32 वर्ष पूर्व स्थापित केंद्र का उद्देश्य हिमालयी क्षेत्र में उपस्थित वनस्पतियों पर शोध करना है। केंद्र के डॉ. राजेंद्र चौहान ने कुटकी, कुठ, जटामांसी, अतीस और मीठा के कृषिकरण तकनीकों, डॉ. केशव गैरोला ने रेजमेरी एवं गेंदा के कृषिकरण, उत्पादन व बाजार व्यवस्था, बीना पठानियां ने औषधीय एवं संगंध पादपों की कृषि तकनीक के संयोजक अंगों और वैद्य राजा राम पोखरियाल ने परपंरागत औषधीय प्रणाली में उपयोग किए जाने वाले उच्च शिखरीय पादप प्रजातियों की पहचान एवं उपयोग की जानकारी दी। वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. विजय कांत पुरोहित ने किसानों को तेजपात की खेती, जड़ी-बूटी कृषिकरण में जैविक खादों के महत्व की विस्तृत जानकारी प्रदान की। कार्यक्रम में वीर सिंह नेगी, रतन सिंह शाह, कुलदीप सिंह, देवी सती, मस्तान सिंह, राकेश बड़ोनी समेत प्रदेश के विभिन्न हिस्सों के किसान शामिल हुए।
in.jagran.yahoo.com se sabhar
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