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Saturday, March 12, 2011

उत्तराखंड के मुख्य मंत्री डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक का उधम सिंह नगर जिले के गूलरभोज का दौरा ....

निशंक 25 मिनट देरी से कार्यक्रम में पहुंचे। उन्होंने शिलान्यास व लोकार्पण की रस्म अदायगी की। मंच तथा भीड़ में अव्यवस्था देखकर 3.28 बजे माइक संभाला और कार्यक्रम में पंडाल में खड़े लोगों को बैठ जाइए-बैठ जाइए की आवाज लगाने लगे। उनकी इस बात का कोई असर नहीं हुआ तो वह बोले-खड़े होने का इतना ही शौक है तो पीछे चले जाए,ं ताकि वे बैठे लोगों को देख सकें। इस बीच निशंक ने कहा कि अब विकास योजनाओं की बात करते है। मंच पर मौजूद जिलाधिकारी बीवीआरसी पुरुषोत्तम से उन्होंने कहा, चलिए आप ही बताइए, पहले किस विभाग की बात करे। इस पर पुरुषोत्तम ने समाज कल्याण विभाग का नाम लिया। जब जिला समाज कल्याण अधिकारी नीरज चिलकोटी मंच पर पहुंची तो निशंक ने जनसमूह से पूछा कि आप इन्हे जानते है। जब भीड़ से आवाज नहीं आई तो उन्होंने चिलकोटी से खुद परिचय तथा विभाग के बारे में बताने को कहा।

निशंक ने क्विज मास्टर की तरह समाज कल्याण विभाग की योजनाओं से संबंधित सवाल छोड़ने शुरू कर दिए। गौरा देवी कन्या धन योजना के बारे में सही उत्तर देने पर बीए की छात्रा पूनम बाला को वहां मौजूद विधायक हरभजन सिंह चीमा से 500 रुपये का पुरस्कार देने को कहा। इस पर चीमा ने 500 के बजाए 1000 रुपये दे दिए। नंदा देवी योजना के सही जवाब पर मंत्री खजान दास से नीतिका सरकार को 500 रुपये देने को कहा। 15 हजार में एमबीबीएस की बात बताने पर मंडी परिषद के अध्यक्ष पूरन शर्मा से संचित राणा को 500 रुपये का पुरस्कार दिलाया। मीडिया सलाहकार अनिल डब्बू तथा पार्टी के पूर्व अध्यक्ष बची सिंह रावत से भी 500-500 रुपये दिलवाए।

रोचक बात यह रही कि बचदा जब 500 रुपये देने को कहा तो उन्होंने जेब में हाथ डाला फिर पीछे खड़े एक कार्यकर्ता से 500 रुपये उधर लेने पड़े।

समाज कल्याण विभाग के बाद लोनिवि का नंबर आया। 10-15 मिनट तक अधिकारियों से पूछताछ की। कार्यक्रम में अव्यवस्था होने तथा देहरादून में मीटिंग होने पर श्री निशंक सायं 4:32 बजे अचानक मंच छोड़ चल दिए। इस दौरान मंच के सामने बनी डी में हंगामा भी होने लगा। इधर विकलांगों को आज तक पेंशन न मिलने पर अधिकारियों को लताड़ते हुए कहा कि जो विकलांग हैं उनको पेंशन मिलनी ही चाहिए। यहां कुछ लोगों को ही पेंशन स्वीकृत हुई है। उन्होंने सवाल किया कि गूलरभोज में मुख्यमंत्री का टेट न लगा होता तो इनको पेंशन ही नहीं मिलती। इधर निशंक के मंच छोड़ने पर अपनी बारी का इंतजार कर रहे विभिन्न विभागों के जिला स्तरीय अधिकारियों ने राहत की सांस ली। इससे पहले उनकी सांस अटकी पड़ी थी।

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