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Saturday, March 12, 2011

अर्थक्वेक रिकार्डर से जगी अब नई आस

http://garhwalbati.blogspot.com

आईआईटी अर्थक्वेक इंजीनियरिंग विभाग के वैज्ञानिकों की योजना परवान चढ़ी तो भविष्य में अर्थक्वेक रिकार्डर का इंडियन डाटाबेस उपलब्ध हो सकेगा। इसके लिए देशभर में संवेदी उपकरण लगाए गए हैं, जिससे पिछले तीन साल के भीतर ३०० से अधिक अर्थक्वेक रिकार्ड किए गए हैं। अब योजना के एक्सटेंशन से आईआईटी वैज्ञानिकों को नई आस जगी है।
अर्थक्वेक संबंधी मानकों और विभिन्न कार्यों के लिए भारतीय वैज्ञानिकों को फिलहाल विदेशी डाटाबेस पर ही निर्भर रहना पड़ता है। इसमें सबसे अधिक डाटाबेस जापान के पास उपलब्ध हैं, जहां दो लाख से अधिक अर्थक्वेक रिकार्ड किए गए हैं। इंडिया में डाटाबेस का अभी तक अभाव था। इसके लिए मिनिस्ट्री ऑफ अर्थसाइंस ने तीन साल पहले आईआईटी रुड़की अर्थक्वेक इंजीनियरिंग विभाग को प्रोजेक्ट दिया था। इसके तहत देश के विभिन्न शहरों में लगभग ३०० अर्थक्वेक रिकार्डर (संवेदी उपकरण) लगाए गए थे। जहां अब तक ३०० से अधिक अर्थक्वेक रिकार्ड किए गए हैं। भारत के विभिन्न स्थानों पर रिकार्ड किए गए अर्थक्वेक डाटाबेस से वैज्ञानिक भी उत्साहित है। ऐसे में मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस ने प्रोजेक्ट को एक्सटेंशन भी दे दिया है। इससे वैज्ञानिकों में भी नई आस जगी है।
प्रोजेक्ट के कोऑर्डिनेटर और आईआईटी अर्थक्वेक इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रो. अशोक कुमार का कहना है कि भारत के पास अर्थक्वेक रिकार्ड संबंधी डाटाबेस का अभाव है। ऐसे में यह प्रोजेक्ट इस दिशा में काफी अहम है। उनका कहना है कि फिलहाल हम जापान सहित दूसरे देशों के डाटाबेस पर ही कार्य कर रहे हैं, लेकिन अब इंडियन डाटा से इसका तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकेगा। 
in.jagran.yahoo.com se sabhar

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