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बर्फ से ढ़की उपला टकनौर घाटी बीते वर्ष तैयार हुई फसल के लिए कोल्ड स्टोर बनी हुई है। सेब व आलू की फसल को जमीन में दबाकर सुरक्षित रखने का परंपरागत तरीका इस बार काफी कारगर साबित हो रहा है। लगातार हुई बर्फबारी से ठंडी हुई धरती के चलते इस फसल के जल्द खराब होने की चिंता से काश्तकार दूर हैं।
जनपद का उपला टकनौर क्षेत्र सेब व आलू उत्पादन के लिए जाना जाता है। यहां करीब छह सौ हेक्टेयर भूमि में सेब का औसत उत्पादन ढाई हजार मीट्रिक टन और आलू का औसत उत्पादन दस हजार मीट्रिक टन है। फसल तैयार होने के बाद परिवहन व कोल्ड स्टोर जैसी सुविधा न होने से दस फीसदी उत्पादन बरबाद हो जाता है। इससे काश्तकारों को नुकसान उठाना पड़ता है, लेकिन काश्तकार अब भी अपने परंपरागत तरीकों से कुछ हद तक फसल को बचाकर रख लेते हैं। इसमें घरों के आसपास जमीन में गड्ढा खोदकर या फिर लकड़ी के बने कोठार में सेब और आलू रख दिए जाते हैं। हर्षिल का सेब अगस्त से अक्टूबर माह तक बाजार में आता है, जबकि आलू अक्टूबर व नवंबर माह में तैयार होता है। इस परंपरागत तरीके से फसलों को पांच से छह माह तक सुरक्षित रखा जा सकता है, लेकिन इसके लिये मौसम की मेहरबानी भी जरूरी है। इस बार मार्च के पहले सप्ताह तक बर्फबारी होने से यह तरीका और ज्यादा कारगर साबित हो रहा है। बर्फ से लकदक जमीन पर नमी और ठंडक लंबे समय तक बने रहने की उम्मीद है। इससे बीते वर्ष तैयार हुए सेब व आलू सुरक्षित रखे हुए हैं। हालांकि, लंबे समय से काश्तकार इस क्षेत्र में कोल्ड स्टोर जैसी सुविधा की मांग कर रहे हैं। पर माना जा रहा है कि इस बार कुदरत ने मेहरबान होकर पूरी घाटी को ही कोल्ड स्टोर बना दिया।
'सेब व आलू की फसलें बहुत जल्द खराब होती हैं। फसल तैयार होने से पहले व उसके बाद भी इन पर काफी ध्यान देना होता है। वैज्ञानिक तरीके से परंपरागत तकनीक को और बेहतर बनाकर उसमें अन्य फसलों को भी खराब होने से बचाया जा सकता है।'
'कोल्ड स्टोर के लिये सेब व आलू के अलावा अन्य सब्जियों का भी बड़े पैमाने पर उत्पादन होना चाहिये। परंपरागत तकनीक इस क्षेत्र के लिये काफी बेहतर है। क्षेत्र में परंपरागत तरीके में थोड़ा परिवर्तन कर जमीन में कोल्ड चैंबर बनाकर फसल को सुरक्षित रखने की दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं।'
in.jagran.yahoo.com se sabhar
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